काली माटी लघुकथा संग्रह से उद्घृत
तीन लघुकथाएं
काली माटी में मालवा -अंचल के कुल 57 कथाकारों की करीब 140 से ऊपर रचनाएँ संकलित हैं जिनमें उनकी विशिष्ट आभा परिलक्षित होती है । ये भाषा -शैली ,कथा -कथोकथन की दृष्टि से भी मँजी हुई हैं ।
इसके संपादक हैं -सुरेश शर्मा
संपर्क -दूरभाष 0731-2553260/ 09926080810
इसके प्रकाशन में वरिष्ठ कथाकार ,आलोचक श्री बलराम अग्रवाल का विशेष सहयोग रहा ।
प्रकाशक
मनु प्रकाशन
1/6678,गली नम्बर 3
पूर्वी रोहतास नगर
शाहदरा ,दिल्ली -110032
मूल्य-150.00 रुपए
काली माटी में पनपी तीन लघुकथाएं पढ़िये ------
1 --बनैले सुअर / विक्रम सोनी
दिशा -मैदान से फारिग होकर पंडित रामदयाल मिश्र और रघुनाथ चौबे लौट रहे थे कि रास्ते में पोस्टमैन चिट्ठी पकड़ाकर चला गया । हाथ में पत्र लिए दोनों एक -दूसरे का मुंह ताकने लगे । चौबे बोले -पंडित जी ,चलो ,चुल्लू भर पानी में डूब मरें । अरे हम कहलाते पंडित हैं ,मगर कागज का चेहरा तक नहीं बांच सकते हैं । धिक्कार है हमारी पंडिताई पर ।
"पता नहीं बेटे की चिट्ठी है ,बहू की है ,समधी की है या किसी रिश्तेदार की । पोस्ट मैन भी सुसरा कार्ड पकड़ाकर सट्ट से भाग गया । अब किससे पढ़वायें !"रामदयाल पर घड़ों पानी पड़ चुका था ।
तभी शहर की तरफ से बिसुआ चमार का बेटा झोला टाँगे आते देखा । पंडित रामदयाल ने उसे करीब बुलाकर कहा -"बेटा ,तू शहर में पढता है न ?ले कार्ड तो बांच दे ।"
बिसुआ के बेटे ने पत्र पढ़कर हाल सुना दिया । पंडित रामदयाल खुशी से उछल पड़े । उनकी बहू को बेटा हुआ है । कल वह गाँव आ रही है । अब उनके घर पर भी एक पढ़ता बेटा होगा । उनका सीना गज भर का हो गया। पत्र लौटाकर बिसुआ चमार का बेटा अभी बीस कदम ही आगे बढ़ा होगा कि चौबे अपना लोटा हथेली पर ठोंकते हुए बोले -"पंडितजी ,धिक्कार है हमारी कौम पर । अरे पंडित जाति की चिट्ठी चमार पढ़े ?इसकी इतनी हिम्मत ----?"
और दोनों ने बिसुआ के बेटे को लोटों से ही मार -मारकर वहीं ख़त्म कर दिया ।
2 --तिरस्कार बनाम स्वीकार / मीरा जैन
अधेड़ दम्पति सांध्य भ्रमण के लिये पैदल निकले । कुछ दूरी तय करने के पश्चात टू व्हीलर चलाती हुई एक आधुनिक कट मार उनके करीब से गुजर गई । उसकी इस हरकत से खफा कुछ उखड़ा मिजाज लिए पति ने पत्नी से कहा --
"आजकल की लड़कियां ,लड़कियां तो बची ही नहीं ,आचरण से पूरी की पूरी आदमी हो गई हैं ,न इनमें मर्यादा ,सहनशीलता ,न बोलने का ढंग ,न पहनने का तरीका ,न सामंजस्य की आदत ,गुस्सा तो नाक पर ही बैठा रहता है --पूरी तरह वाहियात हो गई हैं ।"
पति के विचारों को सुन हरदम शांत रहने वाली पत्नी ने अपनी प्रतिक्रिया कुछ यूँ व्यक्त की --
"चलिए देर से ही सही ,आखिरकार आपको आदमी की परिभाषा तो समझ में आई ,आपने कबूल तो किया आदमी कैसा होता है ।"
3 --महामानव /डॉ तेजपाल सोढ़ी
वे चार संभ्रान्त धनी व्यक्ति कार में एक घायल लावारिस व्यक्ति को गाँव के छोटे से प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में लाये ।
घायल को चिकित्सक के सुपुर्द करते हुए बोले-"सड़क पर पड़ा था । शायद कोई ट्रक वाला टक्कर मार गया । हम उधर से गुजर रहे थे ,मानवता के नाते ले आये ।"
चिकित्सक ने घायल की जांच की ,तो पाया वह बेहोश था । सर पर गहरी चोट लगी थी । चिकित्सक ने उन संभ्रान्त मानवों से कहा -
"इसे तत्काल शहर के लिए बड़े अस्पताल में भेजना पड़ेगा ,यहाँ पर्याप्त साधन नहीं हैं । एम्बुलेंस का शुल्क तो मैं माफ कर दूंगा ,किन्तु एम्बुलेंस के डीजल के लिए डेढ़ सौ रूपये चाहिए । पचास रूपये मैं दे रहा हूँ ,शेष सौ रुपयों की सहायता आप कर दें ।"
पैसों की बात सुनकर वे चारों धीरे-धीरे खिसकने लगे। भीड़ में एक महिला यह दृश्य देख रही थी ।,वह तत्काल चिकित्सक के समक्ष आई और सौ रुपए का नोट निकालकर बोली - "डॉ साहब ,इसे तत्काल बड़े अस्पताल ,इंदौर भेज दें ,बेचारा बच जाएगा ।"
डॉक्टर ने जैसे ही महिला को देखा ,तो पहचान गया और आश्चर्य से बोला --"अरे तुम !तुम सौ रुपए दे रही हो ,तुम्हें तो मैं पिछले चार दिनों से तुम्हारे दमा के लिए बाजार से दवा लाने के लिए कह रहा था ,तुम रोज मना कर देतीं कि डाक्टर साहब पैसे नहीं हैं । शायद तुम झूठ बोल रही थीं ।"
"नहीं डाक्टर साहब !मैं झूठ नहीं बोल रही थी ,कल मेरा भाई देवास से आया था ,वही इलाज के लिए ये सौ रुपए दे गया था ,किन्तु अभी ये पैसे इस लावारिस का जीवन बचा सकते हैं । मैं दो -चार दिन बाद दवा खरीद लूँगी ।" कहकर उस महिला ने सौ रुपए का नोट चिकित्सक के हाथ पर रख दिया ।
चिकित्सक ने हिकारत से उन जाते हुये मानवों को देखा और फिर श्रद्धा से हाथ जोड़कर उस महमानव का अभिवादन किया ।
समाप्त
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