दो लघुकथायेँ
प्रकाशित –नई धारा जून-जुलाई, 2008
1-संघर्ष
गली पार कर एक घर से दूसरे घर में जैसे ही चूहे ने घुसना चाहा कि तभी सामने से आ रही बिल्ली से उसकी आँखें जा टकराई । बिल्ली उस पर झपटती इसके पहले ही वह तेजी से मुड़ा और भागने लगा। अभी वह पाँच-सात कदम ही भाग पाया था कि सामने उसे एक पिंजरा दिखाई पड़ा। अपनी जान बचाने के लिए पिंजरे में घुसने के अलावा चूहे के सामने और कोई दूसरा रास्ता नहीं था।
चूहा पिंजरे में घुसकर कुछ देर के लिए अपनी जान बचा सकता था क्योंकि पिंजरे का दरवाजा इतना छोटा था कि बिल्ली के लिए उसमें घुसना असंभव था। लेकिन चूहा एक बारगी रुका और तन कर खड़ा हो गया। चूहा अपेक्षाकृत मोटा और तगड़ा था। गुर्राती हुई बिल्ली के सामने पहली मर्तबा कोई चूहा इस तरह तन कर खड़ा हुआ था। घोर आश्चर्य से बिल्ली की आँखें फैल गईं। वह पलभर को सहम गई। लेकिन कोई बिल्ली चूहे से डर जाये,ऐसी परंपरा वह कायम नहीं रखना चाहती थी। बिल्लियों की आने वाली पीढ़ी द्वारा धिक्कारे जाने का भय उसके सामने आन खड़ा हुआ। इसलिए उसने आव देखा न ताव,चूहे पर झपट्टा मारती उस पर टूट पड़ी।
चूहा भी संभवत: रूढ़िवादी खोल से बाहर निकल चुका था। यही कारण था कि वह चुपचाप बिल्ली के मुंह में समा जाने के बजाए अपने छोटे-छोटे पंजों और नुकीले दांतों से बिल्ली को बकोटता-काटता रहा जब तक कि उसके प्राण निकल नहीं गए।
बिल्ली उस दिन पहली बार किसी चूहे से टकराकर घायल हुई थी। उसने दौड़-दौड़ कर तमाम बिल्लियों को चूहे का शिकार किसी अन्य तरीके से करने की सलाह दी।
2-अपशकुन
जंगल में इन्सानों की आमद से जानवरों में खलबली मच गई। सभी जानवर बचाव के साथ- -साथ मौका पड़ने पर आक्रमण भी किया जा सके,इस मुद्रा में इधर-उधर छिप गए। बंदर और बंदरियों के झुंड भी अपने-अपने बच्चों को गोद में चिपकाए ऊंचे-ऊंचे दरख्तों की शाखाओं पर घने पत्तों में छिप गए और इंसान की हरकतों को देखने लगे।
इंसान हथियारों से लैस थे। उनमें से एक के हाथ पीछे की ओर बंधे थे और चेहरे पर कई जगह चोट के निशान थे।
कुछ कदम चलने के बाद उनमें से एक ने ,जो शायद उनका सरदार था ,अन्य आदमियों की तरफ कुछ संकेत किया। संकेत पाते ही बंधे हाथ वाले व्यक्ति को एक पेड़ से बांध दिया गया और तेज तलवार से उसकी गर्दन - - - ।
उस आदमी की चीख से जंगल काँप गया। तत्क्षण उसका सर खून से लथपथ होकर जमीन पर लुढ़कने लगा।
जानवर इस दृश्य को देख सिहर उठे। बंदरियों के बच्चे अपनी –अपनी माँ की छाती से कसकर चिपक गए। बच्चे माओं की छाती से चिपककर चीखना ही चाह रहे थे कि उनकी माँओं ने उन्हें मना कर दिया,-‘बेटे,चीखो मत,वरना ये लोग अपने हथियारों से हमें भी मौत की नींद सुला देंगे।’
‘ये सब कौन हैं माँ। और अपने ही जैसे एक को क्यों मार डाला?’ एक बूढ़ी बंदरिया से सटकर बैठा उसका बच्चा फुसफुसाया। उसकी नन्ही-नन्ही आँखों में उत्सुकता की चमक थी।
‘बेटा,ये इंसान कहे जाते हैं;’बूढ़ी बंदरिया बोली, और ये लोग जब आपस में जाति,धर्म,भाषा,रंग-रूप इत्यादि को लेकर दुश्मनी करते हैं तो इसी तरह एक दूसरे को काटकर मार डालते हैं।’
बूढ़ी बंदरिया का बच्चा फिर एक बार सिहर उठा। उसके जिस्म के रोए खड़े हो गए। डर उसकी आंखों में गंदले पानी की सतह पर उभर आई काई की तरह दिखाई पड़ने लगा। कुछ याद आने जैसी मुद्रा में उसने पेड़ की दूसरी शाखा पर बैठे एक भूरे और घने बालों वाले बूढ़े बंदर की तरफ देखकर बोला,’अच्छा तो बाबा इन्हीं के बारे में बताते हैं कि पहले ये लोग हमारी ही जाति के थे, लेकिन अचानक इनकी पूंछ झड़ गई और ये बंदर से इंसान बन गए।’
बंदरिया कुछ न बोली,क्योंकि उसकी निगाह अब भी खून से लथपथ इंसान की लाश पर टिकी थी।
बंदरिया के बच्चे की उत्सुकता उफान पर थी,इसलिए उसने पूछा-'माँ,अगर कभी हम लोगों की पूंछ झड़ गई तो क्या हम भी इंसान बन जाएँगे?’
‘न - - न ॰॰॰बेटे; बंदरिया ने अपनी उंगली बच्चे के मुंह पर रख दी,ऐसा अपशकुन मुंह से मत निकाल॰॰॰हमारी पूंछ कभी नहीं झड़ेगी॰॰॰।’
संकलनकर्ता-सुधा भार्गव
संकलनकर्ता-सुधा भार्गव
मानवेतर लघुकथाओं के संदर्भ मैं केवल इतना कहना चाहूंगी कि वरिष्ठ लघुकथाकार बलराम अग्रवाल के आलोचना व समीक्षापरक विचारों के मंच लघुकथा वार्ता पर अवश्य जाएँ और पढ़ें -'हिन्दी लघुकथा ;मूर्त्त-अमूर्त्त मानवेतर व अतिमानवीय पात्र'
ब्लॉग -लघुकथा वार्ता
http://wwwlaghukatha-varta.blogspot.in/2017/09/blog-post.html
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